दोस्तों! आज इस पोस्ट मे हम Computer Memory के बारे मे जानेंगे। जैसे- मेमोरी क्या होती है, इसके प्रकार क्या है, रैम व रोम क्या है, HDD, SDD, CD/DVD/Floppy और भी अन्य चीजे जो कंप्युटर मेमोरी से संबंधित है जानेंगे। पिछली पोस्ट में Computer Introduction के बारे मे बताया था। जिसका लिंक इस पोस्ट के अंत मे है आप वहाँ से पढ़ सकते है। तो चलिए शुरू करते है।
मेमोरी क्या है (What is Memory)
मेमोरी जिसे स्मृति कहते हैं, यह कंप्युटर का वह भाग होता है जहां डाटा व इनफॉर्मेशन को स्टोर किया जाता है। जिस तरह हम वस्तुओं को तौलते व नापते है उसी प्रकार मेमोरी को भी Bit, Byte, Kilo Byte आदि यूनिट मे नापते हैं।
मेमोरी नापने की इकाइयां ( Memory Measurement Units)
नीचे दी गई टेबल मे मेमोरी नापने के यूनिट्स दिए गए है।
Sr. | Unit | Equal To |
1 | 4 Bit | 1 Nibble |
2 | 8 Bit | 1 Byte |
3 | 1024 Byte | 1 Mega Byte |
4 | 1024 MB | 1 Giga Byte |
5 | 1024 GB | 1 Tera Byte |
6 | 1024 TB | 1 Peta Byte |
7 | 1024 PB | 1 Hexa Byte |
8 | 1024 HB | 1 Zeeta Byte |
9 | 1024 ZB | 1 Yotta Byte |
10 | 1024 YB | 1 Bronto Byte |
11 | 1024 BB | 1 Geon Byte |
कंप्यूटर मेमोरी के प्रकार (Types of Computer Memory)

मुख्य रूप से कंप्यूटर मे दो प्रकार की मेमोरी होती है।
प्राइमरी मेमोरी (Primary Memory)
सेकेंडरी मेमोरी (Secondary Memory)
प्राइमरी मेमोरी (Primary Memory)
प्राइमरी मेमोरी कंप्यूटर की इंटरनल मेमोरी होती है। इसे मुख्य मेमोरी रूप में भी जाना जाता है। प्राइमरी मेमोरी का उपयोग कंप्यूटर की प्रोसेसिंग व संचालन मे किया जाता है। प्राइमरी मेमोरी दो प्रकार की होती है।
रैम (RAM – Random Access Memory)
रोम (ROM – Read Only Memory)
रैम (Random Access Memory)
रैम एक रीड/राइट (Read/Write) मेमोरी होती है, जिसे आमतौर पर कंप्यूटर सिस्टम की मुख्य मेमोरी के रूप में जाना जाता है। रैम टेम्परेरी स्टोरेज के तौर पर ऐसे डेटा, निर्देशो और प्रोग्राम्स को स्टोर करती है जिसे प्रोसेसिंग के लिए उपयोग मे लिया जाता है। रैम मेमोरी की प्रकृति अस्थाई होती है इसलिए रैम में स्टोर की गई जानकारी पावर सप्लाई चालू रहने तक ही रहती है। जब कंप्यूटर बंद हो जाता है या रिस्टार्ट हो जाता है तो रैम मेमोरी खाली हो जाती है। इसलिए इसे वोलाटाइल मेमोरी भी कहा जाता है। रैम मेमोरी के दो प्रकार होते हैं, स्टैटिक रैम और डाइनैमिक रैम।
स्टैटिक रैम (Static RAM)

स्टेटिक रैम को S-RAM के नाम से भी जाना जाता है, यह पावर ऑन रहने तक ही काम करती है तथा पावर ऑफ होने पर ब्लैंक हो जाती है। S-RAM को Static Memory इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके डेटा में कोई परिवर्तन या क्रिया नहीं होती है। S-RAM प्रत्येक बिट को स्टोर करने के लिए बिस्टेबल लैचिंग सर्किटरी का उपयोग करती है। S-RAM का उपयोग अधिकतर कैशे मेमोरी (Cache Memory) के रूप मे प्रोसेसिंग यूनिट(CPU) के लिए किया जाता है, इसलिए यह D-RAM से अधिक महंगी होती है। S-RAM का उपयोग ज्यादातर छोटे आकार के अनुप्रयोगों जैसे सीपीयू, हार्ड ड्राइव बफर, प्रिंटर, मॉडेम, राउटर, और डिजिटल कैमरे आदि में किया जाता है।
कैश मेमोरी (Cache Memory) – कैश मेमोरी एक वोलाटाइल सेमी कंडक्टर मेमोरी होती है, जो सीपीयू के सबसे नजदीक होती है इसलिए इसे सीपीयू मेमोरी भी कहा जाता है। हाल ही के सभी निर्देश जिन्हे CPU प्रोसेस करने वाला होता है, कैश मेमोरी में स्टोर रहते हैं। यह सबसे तेज़ मेमोरी है लेकिन इसकी स्टोरेज क्षमता अन्य मेमोरी की तुलना मे बहुत कम है।
डायनामिक रैम (Dynamic Ram)

डायनामिक रैम को D-RAM के नाम से भी जाना जाता है। D-RAM भी S-RAM की तरह पावर ऑन रहने तक ही काम करती है पावर ऑफ होने पर ब्लैंक हो जाती है। इसमें डेटा को स्टोर करने के लिए कैपेसिटर तथा कुछ ट्रांजिस्टर का प्रयोग जाता है। D-RAM एक विशेष इंटीग्रेटेड सर्किट के भीतर कपैसिटर में प्रत्येक बिट डेटा को संग्रहीत करती है इसलिए डेटा को क्रियाशील बनाए रखने के लिए इसे लगातार रिफ्रेशिंग की जरूरत होती है। D-RAM को डायनेमिक इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इसके डाटा मे लगातार बदलाव या एक्शन होता रहता है। इसका उपयोग मुख्य मेमोरी (Main Memory) के रूप प्रोग्राम को लोड करने मे किया जाता है।
S-RAM और D-RAM मे अंतर
SR.NO. | S-RAM | D-RAM |
---|---|---|
1. | S-RAM में डाटा स्टोर करने के लिए Transistor का उपयोग किया जाता है। | D-RAM में डाटा स्टोर करने के लिए Capacitor तथा कुछ Transistor का उपयोग किया जाता है। |
2. | इसमें Capacitor का उपयोग नहीं किया जाता है इसलिए रिफ्रेश करने की आवश्यकता नहीं है। | Capacitor के उपयोग के कारण समय-समय पर रिफ्रेश करने की आवश्यकता होती है। |
3. | S-RAM काफी फ़ास्ट होती है। | D-RAM स्लो होती है। |
4. | S-RAM महँगी होती है। | D-RAM थोड़ा सस्ती होती है। |
5. | S-RAM कम घनत्व (density) वाली मेमोरी है। | D-RAM ज़्यादा घनत्व (density) वाली मेमोरी है। |
6. | S-RAM का उपयोग Cache मेमोरी के रूप में किया जाता है। | D-RAM का उपयोग मुख्य मेमोरी के रूप में किया जाता है। |
7. | S-RAM एक ऑन-चिप मेमोरी है। | D-RAM एक ऑफ-चिप मेमोरी है। |
रोम (Read Only Memory)

रोम का अर्थ है रीड ओनली मेमोरी जिसे केवल पढ़ा जा सकता है। इसका उपयोग कंप्यूटर मे ऐसे प्रोग्राम को स्टोर करने के लिए किया जाता है, जिनको बदला या मिटाया नहीं जाता है। बेसिक इनपुट आउट्पुट सिस्टम (BIOS) इसका उदाहरण है, BIOS एक ऐसा प्रोग्राम है जिसका उपयोग कंप्यूटर को बूट कराने के लिए किया जाता है, जिसे ROM मेमोरी मे स्टोर करते है। ROM मेमोरी की विशेषता यह है कि एक बार डेटा स्टोर हो जाने के बाद, इसे अब बदला या हटाया नहीं जा सकता। बिजली जाने पर या कंप्यूटर के बंद रहने पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता इसलिए इसे नॉन-वोलाटाइल मेमोरी भी कहा जाता है। ROM मेमोरी का उपयोग कंप्यूटर के साथ अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस मे भी किया जाता है, जैसे- घड़ियाँ, विडिओ गेम, खिलौने, टीवी, रीमोट, एसी, माइक्रोवेव आदि। ROM मेमोरी के कई प्रकार होते है।
M-ROM (मास्क रीड ओनली मेमोरी)
यह सस्ता है और यह पहला ROM है जो हार्ड वायर्ड डिवाइस है जिसमें डेटा या निर्देशों का एक पूर्व-प्रोग्राम किया गया सेट होता है।
P-ROM (प्रोग्रामेबल रीड ओनली मेमोरी)
P-ROM रीड ओनली मेमोरी चिप है, जिसे उपयोगकर्ता द्वारा केवल एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है। P-ROM और ROM के बीच का अंतर यह है कि P-ROM को एक ब्लैंक मेमोरी के रूप में निर्मित किया जाता है, जबकि ROM को निर्माण प्रक्रिया के दौरान ही प्रोग्राम किया जाता है।
EP-ROM (इरेज़ेबल प्रोग्रामेबल रीड ओनली मेमोरी)
EP-ROM एक विशेष प्रकार की रीड ओनली मेमोरी चिप है, जिसमें प्रोग्राम किए गए डेटा को डिलीट करने का अवसर होता है। EP-ROM मेमोरी को उच्च वोल्टेज के साथ पराबैंगनी किरणों की मदद से प्रोग्राम को मिटाकर दोबारा प्रोग्राम किया जा सकता है।
EEP-ROM (इलेक्ट्रॉनिक इरेज़ेबल प्रोग्रामेबल रीड ओनली मेमोरी)
EEP-ROM भी एक तरह की रीड ओनली मेमोरी है। EEP-ROM के ऑपरेशन का सिद्धांत EP-ROM के समान ही है, लेकिन प्रोग्राम और मिटाने के तरीके इसे विद्युत आवेश में उजागर करके किए जाते हैं। इसलिए इसमे किसी पारदर्शी विंडो की आवश्यकता नहीं होती है।
फ्लैश मेमोरी (Flash Memory)
यह एक आधुनिक प्रकार का EEP-ROM है। फ्लैश मेमोरी को साधारण EEP–ROM की तुलना में तेजी से मिटाया और फिर से लिखा जा सकता है। आधुनिक फ्लैश मेमोरी को एक लाख (1,000,000) से भी अधिक बार लिखा व मिटाया जा सकता है।
सेकेंडरी मेमोरी (Secondary Memory)
सेकेंडरी मेमोरी कंप्यूटर की बाहरी मेमोरी होती है इसे सहायक मेमोरी भी कहा जाता है। यह स्थायी मेमोरी होती है इसलिए इसका उपयोग विभिन्न प्रोग्रामों व फ़ाइलों को स्थायी रूप से स्टोर करने के लिए किया जाता है। इसे नॉन-वोलाटाइल मेमोरी भी कहा जाता है क्योंकि कंप्युटर बंद होने पर भी इसमे डाटा बना रहता है। नीचे सेकन्डेरी मेमोरी के कुछ इग्ज़ैम्पल दिए हैं।
फ़्लॉपी डिस्क (Floppy Disk)

फ़्लॉपी डिस्क एक मेग्नेटिक स्टोरेज मीडिया है जिसे रीड करने के लिए कंप्युटर मे फ्लापी डिस्क ड्राइव होना जरूरी है। फ्लापी डिस्क एक चौकोर रिमूवबल स्टोरेज मीडिया है, जिसे फ्लापी ड्राइव से हटाया जा सकता है। यह मैग्नेटिक डिस्क बहुत पतली तथा लचीली होती है, इसलिए इन्हें फ्लोपी डिस्क या डिस्केट भी कहते है। यह मेलर नाम की प्लास्टिक की शीट की बनी होती है और इसके दोनों और मैग्नेटिक सामग्री चिपकी होती है। मैग्नेटिक डिस्क को एक अन्य प्लास्टिक जैकेट में बंद किया जाता है। फ्लापी डिस्क के एक छोटे से भाग को खुला रखा जाता है जिससे डाटा फ्लापी ड्राइव के माध्यम से रीड/राइट किया जाता है। धीरे-धीरे समय के साथ अब यह पुराना स्टोरेज माध्यम है इसलिए फ्लॉपी डिस्क को अन्य प्रकार के स्टोरेज माध्यम जैसे- सीडी, डीवीडी आदि से बदल दिया गया है। फ्लापी ड्राइव के कुछ वर्ज़न नीचे दिए गए है।
8 इंच ड्राइव – 1970 के दशक की शुरुआत में 8 इंच वाला पहला Floppy डिजाइन किया गया था। स्टार्टिंग मे इसे केवल पढ़ने के लिए उपयोग किया जाता था तथा बाद मे बदलाव के साथ इसे पढ़ने और लिखने दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। इसकी शुरुआती स्टोरेज क्षमता 100KB (100000 Characters) थी।
5.25 इंच ड्राइव- 1980 के दशक के दौरान इस फ्लॉपी डिस्क ड्राइव का आविष्कार किया गया था, जो मेनफ्रेम जैसे कंप्युटर पर बड़े पैमाने में उपयोग की जाती थी। 1990 के दशक की शुरुआत में 5.5 इंच फ्लॉपी डिस्क ड्राइव को पर्सनल कंप्यूटर पर भी शामिल किया गया। इस डिस्क का इस्तेमाल डाटा को रीड/ राइट करने के लिए किया जाता था। यह फ्लॉपी डिस्क 360 K.B से 1.2 M.B के बीच डाटा स्टोर कर सकती थी।
3.5 इंच ड्राइव- 3.5 इंच की लोकल डिस्क को आधुनिक Floppy भी कहा जाता है। यह सबसे लोकप्रिय फ्लापी डिस्क थी। इस डिस्क के द्वारा फास्ट स्पीड से डाटा को रीड/राइट किया जा सकता है। यह आकार में छोटी होती है लेकिन इसकी स्टोरेज क्षमता अन्य कि तुलना मे अधिक होती है। यह Double Density Disk पर 730 KB डेटा और High Density Disk पर 1.44 MB डाटा स्टोर कर सकती है।
जिप ड्राइव (Zip Drive)

1990 के दशक के मध्य मे Lomega Corporation ने जिप ड्राइव की शुरुआत की थी। एक जिप डिस्क एक डिस्क पर 100 MB से 750 MB तक डाटा स्टोर करने में सक्षम थी। जिप ड्राइव का उपयोग सीमित था क्योंकि यह बहुत महंगा था, जो इसे लोकप्रिय स्टोरेज डिवाइस बनने से रोकता था और अंत में इसकी गिरावट का कारण बना।
हार्ड डिस्क ड्राइव (Hard Disk Drive)

हार्ड डिस्क ड्राइव (HDD) कंप्यूटर के लिए मेग्नेटिक डेटा स्टोरेज डिवाइस है, जिसकी स्टोरेज कैपेसिटी GB (गीगा बाइट) मे होती है। आज कल पर्सनल कंप्यूटरों मे HDD का उपयोग ऑपरेटिंग सिस्टम, प्रोग्राम्स, व अन्य फाइलों को स्टोर करने के लिए किया जाता है। HDD का साइज़ 1 TB(1000 GB) या इससे अधिक भी होता है। HDD को कंप्युटर के अंदरूनी हिस्से मे स्थापित किया जाता है। HDD मे डाटा पर्मानेंट बैसिस पर स्टोर रहता है जिसे कभी भी एक्सेस किया जा सकता है।
सॉलिड-स्टेट ड्राइव (Solid State Drive)

सॉलिड-स्टेट ड्राइव यानी SSD को HDD का अपडेटेड वर्ज़न कह सकते है। यह इलेक्ट्रोमकैनिकल हार्ड ड्राइव की तुलना में कई गुना फास्ट होती है, क्योंकि इसमे कोई मूविंग पार्ट्स नहीं होते है। इसमे फ्लैश मेमोरी का उपयोग किया जाता है। सबसे खराब SSD हार्ड ड्राइव की तुलना में कम से कम तीन गुना तेज होती है। आमतौर पर SSD की Data Read करने की स्पीड 550mb/s और Data Write करने की स्पीड 520mb/s होती है।
कॉम्पैक्ट डिस्क (Compact Disk)

कॉम्पैक्ट डिस्क (CD) एक फ्लैट, गोल, ऑप्टिकल स्टोरेज माध्यम है। कम्पैक्ट डिस्क को पढ़ने के लिए सीडी रोम ड्राइव की जरूरत होती है। कम्पैक्ट डिस्क का उपयोग सॉन्ग्स, मूवीज के साथ सॉफ्टवेयर व अन्य फाइलस को स्टोर करने के लिए किया जाता है। कम्पैक्ट डिस्क को फ़ाइलों का बैकअप लेने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है जिसे बाद में कंप्यूटर पर ट्रांसफ़र कर सकते है। एक सीडी में 700 एमबी डाटा स्टोर किया जा सकता है। कम्पैक्ट डिस्क दो प्रकार की होती है।
CD – R : CD-R को CD-Recordable डिस्क कहा जाता है। यह एक रिकॉर्ड करने योग्य डिस्क है जो ब्लैंक होती है। CD-R मे डाटा को एक बार रिकार्ड कर कई बार रीड किया जा सकता है।
CD – RW : इसे CD-Rewritable डिस्क कहा जाता है क्योंकि यह एक इरेजेबल तथा रिकॉर्ड करने योग्य डिस्क है जो ब्लैंक होती है। CD – RW मे डाटा को कई बार रिकार्ड किया व मिटाया जा सकता है।
डीवीडी (Digital Versatile Disk)
डीवीडी (DVD) का आकार और बनावट एक CD के समान ही होता है, लेकिन इसकी स्टोरेज क्षमता कम्पैक्ट डिस्क से कई गुना अधिक होती है। डीवीडी भी कम्पैक्ट डिस्क की तरह एक ऑप्टिकल स्टोरेज मीडिया है। एक साधारण डीवीडी मे 4.7 जीबी स्टोरेज क्षमता होती है। डीवीडी सिंगल या डबल साइडेड हो सकती है, क्योंकि सिंगल साइड वन लेयर डिस्क 133 मिनट की विडिओ को रिकार्ड कर सकने मे सक्षम होती है। और डबल साइडेड डीवीडी में 17 जीबी तक वीडियो, ऑडियो या अन्य जानकारी स्टोर कर सकते है। एक ब्लू-रे डीवीडी 128 जीबी डेटा स्टोर कर सकती है। डीवीडी भी कम्पैक्ट डिस्क की ही तरह रिकॉर्ड करने योग्य DVD-R व DVD-RW फॉर्मेट मे आती हैं।
पेनड्राइव (Pen Drive)

पेन ड्राइव एक छोटा रिमूव करने योग्य फ्लैश मेमोरी है, जो यू.एस.बी पोर्ट से कनेक्ट की जाती है। यह एक प्लग एंड प्ले डिवाइस है, यानी इसे कंप्यूटर पर चलाने के लिए किसी बाहरी पावर या ड्राइवर की आवश्यकता नहीं होती है। पेन ड्राइव मे एक फ्लैश मेमोरी चिप होती है, जिसमे सभी प्रकार के डाटा को स्टोर किया जा सकता है।
पेनड्राइव के फायदे
- पेन ड्राइव से तेजी से डाटा कॉपी व ट्रांसफ़र किया जा सकता है।
- इसमे डेटा को स्थायी या बैकअप के रूप में रख सकते हैं।
- पेन ड्राइव को जेब में रखा जाता है जिससे आसानी से कैरी किया जा सकता है।
- यह किसी भी कंप्यूटर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
- इनकी लाइफ बहुत अधिक होती है।
- इसमे अधिक मात्र मे डाटा स्टोर किया जा सकता है जैसे- 32 GB, 64 GB, 128 GB.
यह भी पढे : Computer Introduction (हिन्दी मे)
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